Daridra Dahan Shiv Stotra | दारिद्र्य दहन शिव स्तोत्र और अर्थ

दारिद्र्य दहन शिव स्तोत्र संस्कृत और हिंदी में, अर्थ के साथ (Daridra Dahan Shiv Stotra / Stotram in Sanskrit and Hindi with Meaning)

दारिद्र्य दहन शिव स्तोत्र (Daridra Dahan Shiv Stotra) ऋषि वशिष्ठ द्वारा रचित है। आर्थिक परेशानी और कर्ज से मुक्ति दिलाता है शिवजी का दारिद्रय दहन स्तोत्र। यह स्तोत्र जन्म जन्मांतर की गरीबी को दूर करने वाला मंत्र है।

अगर गरीबी सता रही है, घर में दरिद्रता है, किसी भी प्रकार धन की तंगी से परेशान हैं, या कोई व्यक्ति घोर संकट में है तो उसे शिवजी के मंदिर या फिर भोलेनाथ जी की प्रतिमा के सामने बैठकर इस स्त्रोत का नियमित तीनों समय पाठ करना चाहिए। इससे विशेष लाभ की प्राप्ति होती है। यदि कोई व्यक्ति व्यापार में उन्नति चाहता है तो उसे शिव जी के इस स्त्रोत का पाठ करना चाहिए। 

कहते हैं कर्ज में डूबा व्यक्ति यदि इस स्त्रोत का पाठ करता है तो उसे कर्ज से जल्दी ही मुक्ति मिलती है, यानी उसके कर्ज निवारण के मार्ग खुल जाते है। ऋषि वसिष्ठ द्वारा रचित यह दारिद्र्य दहन शिवस्तोत्रम् सभी प्रकार की सुख-संपत्ति देने वाला है, और जो कोई भी प्रतिदिन तीनों समय अर्थात् सुबह, दोपहर और शाम के समय इसका पाठ करता है, वह स्वर्ग का सुख भोगता है।

दारिद्र्य दहन शिवस्तोत्रम् का मतलब

दारिद्रय का अर्थ -— अलक्ष्मी, अस्वास्थ्य, बीमारी, रोग, शोक, निराशा, कोई काम सफल न होना, अथक प्रयासो के बाद भी लक्ष्मी प्राप्ति में रुकावट आना, व्यापार मे वृद्धि न होना, जीवन मे प्रगति न आना।

दहन का अर्थ — जला देना (खत्म कर देना)

जैसा कि नाम से ही समझा जा सकता है "दारिद्रय दहन स्तोत्र" एक ऐसा स्तोत्र है जो मनुष्य की दरिद्रता, निर्धनता को खत्म कर देता है। यह स्तोत्र वशिष्ठ ऋषि द्वारा रचित है जिसका त्रिकाल ( सुबह - दोपहर - सायं) पाठ करने से दरिद्रता का नाश होता है।

दारिद्रय दहन स्तोत्र का पाठ करने के लाभ या फायदे

जो व्यक्ति किसी कष्ट में होता है, यदि वह खुद ही इस शिव स्त्रोत का पाठ करता है तो यह सर्वोत्तम फलदायी होता है। यदि वह व्यक्ति सक्षम नहीं है तो उसके परिवार वाले भी इस स्त्रोत का पाठ कर सकते है, इससे भी लाभ की प्राप्ति होती है।

जो व्यक्ति घोर आर्थिक संकट से जूझ रहे हों, कर्ज में डूबे हों, व्यापार व्यवसाय की पूंजी बार-बार फंस जाती हो उन्हें दारिद्रय दहन स्तोत्र से भगवान शिव की आराधना करनी चाहिए। महर्षि वशिष्ठ द्वारा रचित यह स्तोत्र बहुत लाभदायक और असरदायक है। यदि संकट बहुत ज्यादा है तो शिवमंदिर में या भगवान शिव की प्रतिमा के सामने प्रतिदिन तीन बार इसका पाठ करें तो विशेष लाभ होगा। आर्थिक संकटों के साथ-साथ पारिवारिक सुख शांति के लिए भी इस स्तोत्र का जप बताया गया है।

शिवजी का ध्यान कर मन में संकल्प करें. जो मनोकामना हो उसका ध्यान करें फिर पाठ आरंभ करें.

यदि आप इसे प्रतिदिन तीनों समय पढ़ेंगे तो आपको भगवान का आशीर्वाद मिलेगा क्योंकि भगवान का नाम अग्नि के समान होता है। अगर आप अनजाने में भी आग को छू लेंगे तो आपकी उंगली जल जाएगी। इसी तरह अगर आपने इसे अनजाने में भी पढ़ा तो आपको भगवान का आशीर्वाद अवश्य मिलेगा इसमें कोई संदेह नहीं।

विशेष प्रयोग-: निरंतर तीन माह तक गन्ने के रस से इस स्तोत्र के 16 पाठ करते हुए शिवलिंग का अभिषेक करना चाहिए उत्तम फल की प्राप्ति होती है

दारिद्र्य दहन शिव स्तोत्र (Daridra Dahan Shiv Stotra) पाठ करने की विधि, पाठ कब शुरू करना चाहिए 

प्रसिद्ध ज्योतिषी CTC Indrajeet के अनुसार इस पाठ को शुक्ल पक्ष के सोमवार से, चंद्रमा की होरा, या पूर्णिमा से शुरू करना चाहिए। 

उनके अनुसार शुरुआत में 6 महीने तक 7 पाठ, भगवान शिव जी के सामने रोजाना करना चाहिए (क्योंकि यह स्तोत्र ज्यादा बड़ा नहीं है), 6 महीने बाद जब इसके 1000 से ज्यादा पाठ हो जाए तो एक पाठ भी रोज कर सकते हैं। लेकिन साथ ही ध्यान दें कि पाठ को करने में स्वच्छता का ध्यान रखें, मांसाहारी, शराबी लोग इस पाठ को ना करें। अगर विश्वास होगा तो ही पाठ करने से लाभ होगा। इसलिए अगर विश्वास ना हो तो पाठ ना करें।

॥ महर्षि वशिष्ठ द्वारा रचित दारिद्र्य दहन शिव स्तोत्रम् (Daridra Dahan Shiv Stotra)॥

ऋषि वशिष्ठ द्वारा रचित प्रामाणिक दारिद्र्य दहन शिव स्तोत्र संस्कृत और हिंदी में अर्थ सहित (Daridra Dahan Shiv Stotra in Hindi and Sanskrit with meaning) यहाँ प्रस्तुत है —

विश्वेशराय नरकार्ण अवतारणाय

कर्णामृताय शशिशेखर धारणाय।

कर्पूर कान्ति धवलाय, जटाधराय,

दारिद्रयदुःख दहनाय नमः शिवाय।।1।।

अर्थ – समस्त चराचर विश्व के स्वामी विश्वेश्वर, नरकरूपी संसार सागर से उद्धार करने वाले, कान से श्रवण करने में अमृत के समान नाम वाले, अपने भाल पर चन्द्रमा को आभूषण रूप में धारण करने वाले, कर्पूर की कान्ति के समान धवल वर्ण वाले, जटाधारी और दरिद्रतारूपी दुःख के विनाशक भगवान भोलेनाथ को मेरा नमस्कार है।

गौरी प्रियाय रजनीश कलाधराय,

कालान्तकाय भुजगाधिप कङ्कणाय।

गङ्गाधराय गजराज विमर्दनाय

दारिद्र्यदुःखदहनाय नमः शिवाय।।2।।

अर्थ – माता गौरी के अत्यन्त प्रिय, रजनीश्वर (चन्द्रमा) की कला को धारण करने वाले, काल के लिए भी अन्तक (यम) रूप, नागराज को कंकण रूप में धारण करने वाले, अपने मस्तक पर गंगा को धारण करने वाले, गजराज का विमर्दन करने वाले और दरिद्रतारूपी दुःख का नाश करने वाले भगवान शिव को मेरा नमन है।

भक्तिप्रियाय भवरोग भयापहाय

उग्राय दुर्ग भवसागर तारणाय।

ज्योतिर्मयाय गुणनाम सुनृत्यकाय,

दारिद्र्यदुःखदहनाय नमः शिवाय।।3।।

अर्थ – भक्ति के प्रिय, संसाररूपी रोग एवं भय का नाश करने वाले, संहार के समय उग्र रूपधारी, दुर्गम भवसागर से पार करानेवाले, ज्योति स्वरुप, अपने गुण और नाम के अनुसार सुन्दर नृत्य करने वाले तथा दरिद्रतारूपी दुःख के विनाशक शिव जी को मेरा नमस्कार है।

चर्माम्बराय शवभस्म विलेपनाय,

भालेक्षणाय मणिकुण्डल‌ मण्डिताय।

मञ्जीर पादयुगलाय जटाधराय

दारिद्र्यदुःखदहनाय नमः शिवाय।।4।।

अर्थ – व्याघ्र चर्म को धारण करने वाले, चिता भस्म को लगाने वाले, भाल में तीसरा नेत्र धारण करने वाले, मणियों के कुण्डल से सुशोभित, अपने चरणों में नूपुर धारण करने वाले जटाधारी और दरिद्रतारूपी दुःख के विनाशक शिव जी को मेरा नमस्कार है।

पञ्चाननाय फणिराज विभूषणाय

हेमांशुकाय भुवनत्रय मण्डिताय।

आनन्दभूमि वरदाय तमोमयाय,

दारिद्र्यदुःखदहनाय नमः शिवाय।।5।।

अर्थ – पाँच मुख वाले, नागराजरूपी आभूषणों से सुसज्जित, सुवर्ण के समान किरण और वस्त्र वाले, तीनों लोकों में पूजित, आनन्दभूमि (काशी) को वर प्रदान करने वाले, सृष्टि के संहार के लिए तमोगुण धारण करने वाले तथा दरिद्रतारूपी दुःख के विनाशक भगवान शिव जी को मेरा नमस्कार है।

भानुप्रियाय भवसागर तारणाय,

कालान्तकाय कमलासन पूजिताय।

नेत्रत्रयाय शुभलक्षण लक्षिताय

दारिद्र्यदुःखदहनाय नमः शिवाय।।6।।

अर्थ – सूर्य को अत्यन्त प्रिय, भवसागर से उद्धार करने वाले, काल के लिये भी महाकालस्वरूप, कमलासन ब्रह्मा से पूजित, तीन नेत्रों को धारण करने वाले, शुभ लक्षणों से युक्त तथा दरिद्रतारूपी दुःख के विनाशक भगवान शिव जी को मेरा नमस्कार है।

रामप्रियाय रघुनाथ वरप्रदाय

नागप्रियाय नरकार्ण अवतारणाय।

पुण्येषु पुण्य भरिताय सुरार्चिताय,

दारिद्र्यदुःखदहनाय नमः शिवाय।।7।।

अर्थ – मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम को अत्यन्त प्रिय, रघुनाथ जी को वर देनेवाले, सर्पों के अतिप्रिय, भवसागररूपी नरक से तारने वाले, पुण्यवानों में परिपूर्ण अत्यंत पुण्यवाले, समस्त देवताओं से सुपूजित तथा दरिद्रतारूपी दुःख का नाश करने वाले भगवान शिव जी को मेरा नमस्कार है।

मुक्तेश्वराय फलदाय गणेश्वराय

गीतप्रियाय वृषभेश्वर वाहनाय।

मातङ्ग चर्म वसनाय महेश्वराय,

दारिद्र्यदुःखदहनाय नमः शिवाय।।8।।

अर्थ – मुक्तजनों के स्वामीस्वरूप, चारों पुरुषार्थों का फल देने वाले, प्रमथादि गणों के स्वामी, स्तुतिप्रिय, नन्दीवाहन, मातङ्गचर्म को वस्त्ररूप में धारण करने वाले, महेश्वर तथा दरिद्रतारूपी दुःख के विनाशक भगवान शिव जी को मेरा नमस्कार है।

वसिष्ठेन कृतं स्तोत्रं सर्व रोग निवारणम्

सर्व संपत् करं शीघ्रं पुत्र पौत्रादि वर्धनम्।।

शुभदं कामदं ह्दयं धनधान्य प्रवर्धनम्

त्रिसन्ध्यं यः पठेन् नित्यम् स हि स्वर्गमवाप्नुयात्।।9।।

अर्थ – महर्षि वसिष्ठ द्वारा रचित यह स्तोत्र सभी प्रकार के रोगों को दूर करता है। यह शीघ्र ही सभी प्रकार की संपत्तियों को प्रदान करता है और पुत्र – पौत्रादि वंश परम्परा को बढ़ाता है। यह शुभफल देने वाला, मनोकामनाएँ पूरी करने वाला, हृदय को आनंदित करने वाला और धन-धान्य को बढ़ाने वाला है। जो भक्त प्रतिदिन सुबह, दोपहर और शाम तीनों समय इसका पाठ करता है, उसे निश्चय ही स्वर्गलोक की प्राप्ति होती है।

।।इति श्रीवशिष्ठरचितं दारिद्रयुदुखदहन शिवस्तोत्रम संपूर्णम्।।

इस स्तोत्र का जाप करने या सुनने से व्यक्ति को अपार शक्ति, सौंदर्य और मानसिक शक्ति मिलती है। ऐसा कहा जाता है कि स्तोत्र का जाप करने से सभी नकारात्मक ऊर्जाएं दूर हो जाती हैं और वातावरण भी पवित्र हो जाता है।

काल हरो, हर कष्ट हरो, हर दुःख हरो, दारिद्र्य हरो। नमामि शंकर भवानी भोलेबाबा हर हर शंभु तुम शरणम्

॥जय शिवशंकर जय भोलेनाथ, हर हर महादेव॥

दारिद्र्य दहन शिव स्तोत्र संस्कृत और हिंदी में, अर्थ के साथ (Daridra Dahan Shiv Stotra / Stotram in Sanskrit and Hindi with Meaning)


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