भगवान की स्तुति और प्रार्थना : रोज बोले जाने वाले प्रमुख और चमत्कारी मंत्र - श्लोक
सरल शुभ मंत्र जो बनाए जीवन को सौभाग्यशाली (Roj Bole Jane Wale Mantra) — शास्त्रों में मनुष्य की दिनचर्या के बारे में कई महत्वपूर्ण नियम बताए गए हैं. यदि नियमों के अनुसार दिन की शुरुआत की जाए, तो मनुष्य अपने जीवन में सकारात्मक परिवर्तन ला सकता है, जीवन की परेशानियां कम होने लगती हैं. मनुष्य को प्रातः जल्दी उठना चाहिए और स्नान आदि करके पूजा-पाठ या उपासना आदि करना चाहिए.ब्राह्मे मुहूर्ते बुद्ध्येत धर्मार्थौ चानुचिन्तयेत॥
वर्णं कीर्तिं मतिं लक्ष्मिं स्वास्थ्यमायुश्च विन्दति।
ब्राह्मे मुहूर्ते सञ्जाग्रच्छ्रियं वा पङ्कजं यथा॥
सुबह-सुबह या ब्रह्ममुहूर्त (सूर्योदय के डेढ़ घंटा पहले का मुहूर्त) में उठने की बड़ी महत्ता है. ब्रह्ममुहूर्त में उठने वाला मनुष्य सौंदर्य, लक्ष्मी, स्वास्थ्य, आयु, बल, बुद्धि और विद्या आदि को प्राप्त करता है. यहां हम सुबह-सुबह बोले जाने और रोज पूजा के समय बोले जाने कुछ प्रमुख मंत्रों के बारे में बता रहे हैं-
1. करदर्शन (कराग्रे वसते लक्ष्मिः)
"कराग्रे वसते लक्ष्मिः" सबसे अधिक प्रचलित मंत्रों में से एक है, जिसे हर दिन सभी जन समान रूप से जपते हैं. मंत्र ध्यान के ज्यादातर अभ्यासी सुबह जल्दी उठकर अपनी हथेलियों को देखते हुए (या वैसे ही) इस मंत्र का जाप करके या इसे सुनकर ही अपने दिन की शुरुआत करते हैं.
हमारी हथेलियों के अग्रभाग में धन की प्रदाता माता लक्ष्मी, मध्यभाग में बुद्धि की दाता माता सरस्वती और हथेली के मूल भाग में समृद्धि के दाता भगवान गोविन्द निवास करते हैं, इसलिए प्रभात में नींद से उठते ही अपने हाथों की हथेलियों का दर्शन करना चाहिए और इन सर्वोच्च शक्तियों की कल्पना और आह्वान करें.
कराग्रे वसते लक्ष्मिः करमध्ये सरस्वती।
करमूले तु गोविन्द: प्रभाते करदर्शनम्
समुद्रवसने देवि पर्वतस्तनमण्डले।
विष्णुपत्नि नमस्तुभ्यं पादस्पर्शं क्षमस्वमे॥
अर्थ – मेरे हाथ के अग्रभाग में भगवती मां लक्ष्मी जी का निवास है, मध्यभाग में विद्यादात्री मां सरस्वती जी का और मूलभाग में सृष्टि के पालनहार प्रभु विष्णु जी विराजमान हैं. प्रातः काल की इस बेला में मैं आपका स्मरण कर प्रणाम करता/करती हूं.
ब्रह्मा मुरारिस्त्रिपुरान्तकारी
भानुः शशी भूमिसुतो बुधश्च।
गुरुश्च शुक्रः शनिराहुकेतवः
कुर्वन्तु सर्वे मम सुप्रभातम्॥
अर्थ – "ब्रह्मा, विष्णु और भगवान शिव, सूर्य, चंद्रमा, भूमि सुत अर्थात मंगल, बुध, गुरु, शुक्र, शनि, राहु और केतु सभी ग्रहों की शांति करें." इस मंत्र में सभी ग्रहों को आपके अनुकूल बनाने की क्षमता है. यह मंत्र सभी ग्रहों को शांत करता है और अशुभ फलों को कम करके, शुभ फलों को देने वाले ग्रहों को बलवान बनाता है.
2. माँ सरस्वती वंदना (सरस्वती मंत्र)

मां सरस्वती के भक्तगण विद्याधन की प्राप्ति के लिए प्रत्येक सुबह सरस्वती वंदना मंत्र का पठन करते हैं. भारत में संगीतकारों से लेकर वैज्ञानिकों तक हर कोई ज्ञान-प्राप्ति और मार्गदर्शन के लिए भगवती सरस्वती देवी की पूजा-प्रार्थना करता है.
ॐ ऐं सरस्वत्यै नमः
या कुन्देन्दुतुषारहारधवला या शुभ्रवस्त्रावृता
या वीणावरदण्डमण्डितकरा या श्वेतपद्मासना।
या ब्रह्माच्युत शंकरप्रभृतिभिर्देवैः सदा वन्दिता
सा मां पातु सरस्वती भगवती निःशेषजाड्यापहा॥
शुक्लां ब्रह्मविचार सार परमामाद्यां जगद्व्यापिनीं
वीणा-पुस्तक-धारिणीमभयदां
जाड्यान्धकारापहाम्।
हस्ते स्फटिकमालिकां विदधतीं पद्मासने संस्थिताम्
वन्दे तां परमेश्वरीं भगवतीं बुद्धिप्रदां शारदाम्॥
3. गणेश वंदना (गणेश मंत्र)
ॐ श्री गणेशाय नम:।
ॐ गं गणपतये नम:।
गजाननं भूतगणाधिसेवितं
कपित्थजम्बूफलचारुभक्षणम्।
उमासुतं शोकविनाशकारकम्
नमामि विघ्नेश्वरपादपङ्कजम्॥
"हे गज मुख वाले, भूत गणों के द्वारा सेवा किए जाने वाले, कपित्थ, जम्बु (जामुन) को ग्रहण करने वाले, आप उमा के पुत्र हैं, समस्त दुखों को समाप्त करने वाले, विघ्न को दूर करने वाले श्री गणेश जी के चरण कमल में मैं नमन करता/करती हूँ."
(भूत-गण भगवान शिव के भक्त हैं. शिव पुत्र होने के कारण भूतगण को श्रीगणेश जी के भी भक्त कहा गया है. श्री गणेश जी को कैथ और जामुन के फल अत्यंत प्रिय हैं).
4. गायत्री मंत्र
वैदिक मंत्र गायत्री मंत्र को सबसे शक्तिशाली मंत्रों में से एक माना गया है. गायत्री मंत्र पर देश में ही नहीं, विदेशों में भी कई रिसर्च हो चुकी हैं, जिनमें यह पाया गया है कि रोजाना एक निश्चित संख्या में सही तरीके से गायत्री मंत्र का जप करने से मानसिक और शारीरिक ताकत बढ़ती है.
ॐ भूर्भुव: स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात्।
(Om bhoor bhuvah swah tat savitur varenyam
bhargo devasya dheemahi dhiyo yo nah prachodayat).
5. सूर्य वंदना (सूर्य मंत्र)
रोजाना प्रातः सूर्य की उपासना से शारीरिक और मानसिक तेज बढ़ता है, साथ ही पद, प्रतिष्ठा, समृद्धि और वैभव प्राप्त होता है. रोजाना उगते सूर्य को नमस्कार करने और उसे जल चढ़ाने से जीवन में उन्नति होती है और यश बढ़ता है.
ॐ सूर्याय नमः
ॐ आदित्याय नमः
ॐ भास्कराय नमः
ॐ दिवाकराय नमः
ॐ घृणि सूर्याय नमः
हे सूर्य देव, हे तेजपुंज, हे ज्योतिर्मय, हे तिमिर हरण।
हे कमल विकासन, सर्वोच्चासन, रोग शोक दुःख दूर करण।
आदित्य, दिवाकर, अंशुमान, रवि आदि तुम्हारे संबोधन।
हे सूर्यवंश के मूल नाथ, तव राम करे शत कोटि नमन।
6. भगवान् शिव स्तुति (शिव मंत्र)
॥ ॐ नमः शिवाय॥
(यह छोटा सा पर बेहद पॉवरफुल मंत्र है. रोजाना सही तरीके से 'ॐ नमः शिवाय' मंत्र का कम से कम 108 बार जप करने से कुछ हफ्तों बाद जीवन में पॉजिटिव बदलाव अपने आप दिखाई देने लगते हैं.)
कर्पूरगौरं करुणावतारं
संसारसारं भुजगेन्द्रहारम्।
सदा बसन्तं हृदयारबिन्दे
भवं भवानीसहितं नमामि।।
"भगवान् शिव जो कर्पूर के समान गौर वर्ण वाले हैं, जो करुणा के साक्षात् अवतार हैं, जो संसार के मूल हैं (जो समस्त सृष्टि के सार हैं) और जो महादेव सर्पराज को गले में हार के रूप में धारण किए हुए हैं, ऐसे सदैव प्रसन्न रहने वाले भगवान शिव को, अपने हृदय कमल में शिव-पार्वती को मैं एक साथ नमस्कार करता/करती हूँ."
7. महामृत्युंजय मंत्र
ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्।
उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात्॥
(Om tryambakam yajamahe sugandhim pushtivardhanam
urvarukamiva bandhanan mrityor mukshiya maamritat)
8. श्री विष्णु स्तुति (श्री विष्णु मंत्र)
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय नमः
ॐ तुभ्यं नमामि नारायणाय
तुभ्यं नमामि जगदीश्वराय।
हे लक्ष्मीकांतम तुभ्यं नमामि
हे शांताकारम तुभ्यं नमामि।।
शान्ताकारं भुजगशयनं पद्मनाभं सुरेशं
विश्वाधारं गगनसदृशं मेघवर्णम् शुभाङ्गम्।
लक्ष्मीकान्तम् कमलनयनं योगिभिध्यार्नगम्यम्
वंदे विष्णुम् भवभयहरं सर्वलोकैकनाथम्॥
यं ब्रह्मा वरुणेन्द्ररुद्रमरुत: स्तुन्वन्ति दिव्यै: स्तवै
र्वेदै: साङ्गपदक्रमोपनिषदैर्गायन्ति यं सामगा:।
ध्यानावस्थिततद्गतेन मनसा पश्यन्ति यं योगिनो
यस्तानं न विदु: सुरासुरगणा देवाय तस्मै नम:॥
"जिनकी आकृति और रूप अतिशय शांत है, जो शेषनाग की शैया पर शयन करते हैं, जिनकी नाभि में कमल है, जो देवों के भी ईश्वर और संपूर्ण जगत के आधार हैं, जो आकाश की तरह सर्वत्र व्याप्त हैं, जिनका वर्ण नीलमेघ के समान है, जिनके संपूर्ण अंग अतिशय सुंदर हैं, जो योगियों द्वारा ध्यान करके प्राप्त किए जाते हैं, जो संपूर्ण लोकों के स्वामी हैं, जो जन्म-मरण के भय का नाश करने वाले हैं, ऐसे लक्ष्मीपति, कमलनेत्र भगवान श्रीविष्णु जी को मैं प्रणाम करता/करती हूँ. ब्रह्मा, वरुण, इन्द्र, रुद्र और मरुद्गण दिव्य स्तोत्रों द्वारा जिनकी स्तुति करते हैं, सामवेद के गाने वाले अंग, पद, क्रम और उपनिषदों सहित वेदों द्वारा जिनका गान करते हैं, योगीजन ध्यान में स्थित तद्गत हुए मन से जिनका दर्शन करते हैं, देवता और असुर गण (कोई भी) जिनके आदि और अन्त को नहीं जानते, उन परमपुरुष नारायण देव को मेरा नमस्कार है."
मंगलम भगवान् विष्णु
मंगलम गरुड़ध्वजः
मंगलम पुन्डरी काक्षो
मंगलायतनो हरिः।
"भगवान विष्णु मंगल करें, कल्याण करें, गरुण की सवारी करने वाले विष्णु मंगल करें, कमलनयन भगवान विष्णु मंगल करें, भगवान श्रीहरि सबका मंगल करें."
9. श्रीराम मंत्र
श्रीराम के मंत्र या रोजाना श्रीराम नाम का जप करने से सभी देवी-देवताओं की कृपा प्राप्त हो जाती है. देवों के देव महादेव भगवान शिव-शंकर भी श्रीराम का ध्यान करते रहते हैं. हनुमान जी को प्रसन्न करने का सबसे बड़ा मंत्र भी श्रीराम मंत्र ही है. और इसीलिए 'श्रीराम' या 'सीताराम' नाम को सबसे शक्तिशाली मंत्रों में से एक माना गया है. यदि हो सके तो रोजाना संस्कृत में श्रीरामरक्षास्तोत्र (Shri Ramrakshastotra) का पाठ करें या ध्यान से सुनें.
नीलाम्बुजश्यामलकोमलाङ्गं
सीतासमारोपितवामभागम्।
पाणौ महासायकचारूचापं
नमामि रामं रघुवंशनाथम्।
राम रामेति रामेति रमे रामे मनोरमे।
सहस्रनाम तत्तुल्यं रामनाम वरानने॥
रामाय रामभद्राय रामचंद्राय वेधसे।
रघुनाथाय नाथाय सीताया: पतये नम:॥
लोकाभिरामं रनरङ्गधीरं राजीवनेत्रं रघुवंशनाथम्।
कारुण्यरूपं करुणाकरंतं श्रीरामचंद्रं शरणं प्रपद्ये॥

10. हनुमान जी के मंत्र
सभी जन (स्त्री-पुरुष) को रोजाना कम से कम एक बार हनुमान चालीसा का पाठ जरूर करना या सुनना चाहिए. इससे बहुत सारे फायदे देखने को मिलते हैं. हनुमान जी सभी प्रकार के बंधनों से मुक्त हैं, अतः उनकी पूजा-उपासना से सभी प्रकार की समस्याओं के बंधन, ग्रहों की बाधाओं, शत्रुओं आदि से मुक्ति मिल जाती है. हनुमान चालीसा का पाठ करने से पहले श्रीराम और सीता जी का ध्यान जरूर करें.
मनोजवं मारुततुल्यवेगं
जितेन्द्रियं बुद्धिमतां वरिष्ठम्।
वातात्मजं वानरयूथमुख्यं
श्रीरामदूतं शरणं प्रपद्ये॥
त्वमेव माता च पिता त्वमेव,
त्वमेव माता च पिता त्वमेव,
त्वमेव बंधु च सखा त्वमेव
त्वमेव विद्या द्रविणं त्वमेव
त्वमेव सर्वं मम देव देव।
11. श्री राधा कृष्ण मंत्र
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय नमः
'श्री राधे राधे'
श्रीकृष्ण गोविंद हरे मुरारे, हे नाथ नारायण वासुदेवा।
12. देवी मंत्र और महालक्ष्मी मंत्र
ॐ श्रीं महालक्ष्म्यै नम:॥
ॐ महालक्ष्मी नमस्तुभ्यं नमस्तुभ्यं सुरेश्वरी
हरि प्रिय नमस्तुभ्यं नमस्तुभ्यं दयानिधेः॥
13. नवदुर्गा मंत्र
प्रथमं शैलपुत्री च द्वितीयं ब्रह्मचारिणी।
तृतीयं चन्द्रघण्टेति कूष्माण्डेति चतुर्थकम्॥
पंचमं स्कन्दमातेति षष्ठं कात्यायनीति च।
सप्तमं कालरात्रीति महागौरीति चाष्टमम्।।
नवमं सिद्धिदात्री च नवदुर्गा: प्रकीर्तिता:।
उक्तान्येतानि नामानि ब्रह्मणैव महात्मना।
सर्व मंगल मांग्लयै शिवे सर्वार्थ साधिके।
शरण्ये त्रयम्बके गौरी नारायणी नमोस्तुते॥

14. शांति मंत्र (Shanti Mantra)
शान्ति मंत्र वेदों के वे मंत्र हैं जो शांति की प्रार्थना करते हैं, सभी के सुख की प्रार्थना करते हैं. ये सभी मंत्र सबसे प्राचीन ग्रंथ वेदों से लिए गए हैं. यजुर्वेद के इस शांति पाठ मंत्र में सृष्टि के समस्त तत्वों और कारकों से शांति बनाए रखने की प्रार्थना करते हैं.
ॐ द्यौ: शान्तिरन्तरिक्षँ शान्ति:
पृथिवी शान्तिराप: शान्तिरोषधय: शान्ति:। वनस्पतय: शान्तिर्विश्वेदेवा:
शान्तिर्ब्रह्म शान्ति: सर्वं शान्ति:
शान्तिरेव शान्ति: सा मा शान्तिरेधि॥ ॐ शान्ति: शान्ति: शान्ति:॥
ॐ असतो मा सद्गमय।
तमसो मा ज्योतिर्गमय।
मृत्योर्माऽमृतं गमय।
ॐ शान्ति: शान्ति: शान्ति:॥
"मुझे असत्य से सत्य की ओर ले चलो. मुझे अंधकार से प्रकाश की ओर ले चलो. मुझे मृत्यु से अमरता की ओर ले चलो." (बृहदारण्यकोपनिषद् 1.3.28)
ॐ सह नाववतु।
सह नौ भुनक्तु।
सह वीर्यं करवावहै।
तेजस्विनावधीतमस्तु।
मा विद्विषावहै॥
ॐ शान्ति: शान्ति: शान्ति:॥
(तैत्तिरीय उपनिषद्, कठोपनिषद्, मांडूक्योपनिषद् और श्वेताश्ववतरोपनिषद्)
स्वस्ति न इन्द्रो वृद्धश्रवाः।
स्वस्ति नः पूषा विश्ववेदाः।
स्वस्ति नस्तार्क्ष्यो अरिष्टनेमिः।
स्वस्ति नो बृहस्पतिर्दधातु॥
ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः॥
(मुण्डक उपनिषद्, माण्डूक्य उपनिषद् और प्रश्नोपनिषद्)
सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामया,
सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चिद् दुख भागभवेत।
"सभी सुखी होवें,
सभी रोगमुक्त रहें,
सभी मंगलमय के साक्षी बनें
और किसी को भी दुःख का भागी न बनना पड़े."
15. गुरु मंत्र
गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः।
गुरुःसाक्षात् परंब्रह्म तस्मै श्रीगुरवे नम:॥
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