Brihadeeswarar Temple : चोलों की शक्ति का प्रतीक राजराजेश्वर मंदिर, हर किसी को करता है आश्चर्यचकित

Brihadeeswarar Temple: चोलों की शक्ति का प्रतीक राजराजेश्वर मंदिर, हर किसी को करता है आश्चर्यचकित

Rajarajeshwara Brihadisvara Temple Thanjavur

हमारे भारत के प्राचीन मंदिरों की कोई तुलना नहीं. इनकी केवल तस्वीरें देखने से मन नहीं भर सकता. इनकी भव्यता और सुंदरता तो इनमें कदम रखकर और इनकी दीवारों को छूकर ही महसूस किया जा सकता है. हमारे देश के प्राचीन मंदिर किसी भी व्यक्ति के मन को बांध लेते हैं, और यही कारण है कि इन मंदिरों में जाकर कोई भी व्यक्ति आधुनिक दुनिया को भूलकर बस इन्हीं में खो जाता है. ऐसा ही एक मंदिर है तंजावुर का बृहदेश्वर मंदिर (Brihadeeswarar Temple, Thanjavur), जिसकी अद्भुत वास्तुकला, शिल्पकला और भव्यता को देखकर आश्चर्य की कोई सीमा ही नहीं रहती. भगवान शिव को समर्पित बृहदेश्वर मंदिर भारत में सुन्दर राज्य तमिलनाडु के प्रमुख मंदिरों में से एक है और भारतीय उपमहाद्वीप के सबसे खूबसूरत वास्तुशिल्प स्थलों में से एक माना जाता है. यह मंदिर तंजावुर नगर में कावेरी नदी के तट पर स्थित है और इसकी एक समृद्ध ऐतिहासिक विरासत है. यह मंदिर पर्यटकों को प्राचीन और आधुनिक दक्षिण भारतीय सभ्यताओं की याद दिलाता है. 

चोल राजवंश की उपलब्धियों का प्रतीक-

राजा राजराजा चोल प्रथम की शक्ति को दर्शाता हुआ यह मंदिर चोल राजवंश की उपलब्धियों और प्रगति का प्रमाण है. इस मंदिर को 'पेरुवुटैयार कोविल' (Peruvudaiyar Kovil, Tanjore) भी कहा जाता है. बृहदेश्वर मंदिर का निर्माण महान चोल सम्राट राजराजा चोल प्रथम (Chola Emperor Raja Raja Chola I) ने वर्ष 1010 ईस्वी में करवाया था. इस मंदिर का एक नाम 'राजराजेश्वर मंदिर भी है, लेकिन बाद में मराठों ने इसे बृहदेश्वर या 'महान ईश्वर' का नाम दे दिया. 

मंदिर बनवाकर मनाते थे जीत का उत्सव-

दक्षिण भारत के प्राचीन इतिहास में चोलों को सूर्यवंशी भी कहा गया है. चोल शासकों ने दक्षिण भारत और आसपास के अन्य देशों में एक बहुत ही शक्तिशाली साम्राज्य का निर्माण किया था. चोल राजवंश के शासक, खासकर राजराजा प्रथम और राजेंद्र प्रथम युद्ध में हुई जीत का उत्सव भगवान शिव या भगवान विष्णु जी के मंदिर बनवाकर मनाते थे. brihadeshwara temple, brihadisvara temple, brihadeeswara temple, peruvudaiyar kovil, rajarajeshwara temple thanjavur, chola emperor rajaraja i, chola dynasty, chola temple architecture 

यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थल में शामिल-

साल 2010 में इस मंदिर ने अपने अस्तित्व के 1000वें वर्ष का उत्सव मनाया था. इस पवित्र मंदिर ने बड़ी संख्या में कलाकारों, संगीतकारों भरत नाट्यम नृत्य शैली का अभ्यास करने वाले नर्तकियों के लिए एक प्रमुख मंच के रूप में भी काम किया. बृहदेश्वर मंदिर को 1987 में यूनेस्को (UNESCO) की विश्व धरोहर स्थल में "महान जीवित चोल मंदिर" के रूप में लिस्टेड किया गया है. 

Chola Dynasty Architecture-

चोल काल में स्थापत्य समेत संस्कृति के अलग-अलग पक्षों का बहुमुखी विकास हुआ. चोल शासकों ने द्रविड़ शैली में ईंटों की जगह पत्थरों और शिलाओं का इस्तेमाल कर ऐसे-ऐसे मंदिरों का निर्माण किया है, जिनका अनुकरण पड़ोसी देशों तक ने किया. चोलों की स्थापत्य वास्तुकला में मूर्तिकला और चित्रकला का बेजोड़ संगम है. और इसीलिए स्थापत्य कला और अन्य सांस्कृतिक उपलब्धियों की दृष्टि से चोलकाल को दक्षिण भारत का स्वर्णकाल भी कहा जाता है. 

♦ बृहदेश्वर मंदिर क्षेत्र की स्थापत्य उत्कृष्टता का एक उदाहरण है. इस पवित्र स्थान की शानदार चमक चोलों की कला की पूर्णता की ओर इशारा करती है. इस शुभ तीर्थ का निर्माण अक्षीय और सममित ज्यामिति के नियमों का पालन करते हुए किया गया है. कहा जाता है कि बृहदेश्वर मंदिर का निर्माण केवल सात वर्षों में हो गया था. 

♦ बृहदेश्वर मंदिर के निर्माण में लगभग 1,30,000 टन ग्रेनाइट का इस्तेमाल किया गया था. इस मंदिर में स्थापित शिवलिंग की ऊंचाई 13 फीट और परिधि 54 फीट है. यह भारत में सबसे बड़ी अखंड शिवलिंग मूर्तियों में से एक है. भव्य शिवलिंग को देखने पर उनका वृहदेश्वर नाम पूरी तरह से उचित है. 

♦ पवित्र मंदिर में एक मंदिर टॉवर है जो 216 फीट (लगभग 66 मीटर) की ऊंचाई पर बनाया गया है. दुनिया में सबसे ऊंचा होने के कारण यह मेरु पर्वत का प्रतीक कहा जाता है. 'गोपुर' या दो द्वार मंदिर के पूर्वी प्रवेश द्वार पर स्थित हैं. brihadeshwara temple, brihadisvara temple, brihadeeswara temple, peruvudaiyar kovil, rajarajeshwara temple thanjavur, chola emperor rajaraja i, chola dynasty, chola temple architecture 

♦ शिखर पर स्थित स्वर्णकलश, जिसे 'कुंभम' भी कहते हैं, उसका वजन लगभग 2200 मन (80 टन) है. और यह स्वर्णकलश जिस पर स्थापित है, वह एक ही पत्थर से बना हुआ है. 

♦ राजसी मीनार और गुंबद को टॉप पर उठाना चोल आर्किटेक्ट्स के इंजीनियरिंग कौशल का प्रमाण है, जिन्होंने इसके निर्माण की योजना इस तरह से बनाई कि इसकी छाया जमीन पर नहीं पड़ती. 

♦ मंदिर के प्रवेश द्वार पर भगवान शिव के वाहन नंदी की एक विशाल मूर्ति है, जो 25 टन वजनी, लगभग 16 फीट (4.9 मीटर) लंबी और 13 फीट (4.0 मीटर) ऊंची मूर्ति है. इस मूर्ति को एक ही पत्थर को तराश कर बनाया गया है. भारत में एक ही पत्थर से बनी नंदी जी की यह दूसरी सबसे विशाल मूर्ति है. 

♦ पूरे मंदिर परिसर में 250 शिवलिंग हैं. इस मंदिर में भगवान शिव, दुर्गा, लक्ष्मी, अर्द्धनारीश्वर जैसे देवताओं कि मूर्तियों के साथ-साथ राजाओं और रानियों की भी प्रतिमाएं हैं. मंदिर के प्रवेश द्वार पर स्थित वेदी में भगवान गणेश की दो मूर्तियां हैं. 

♦ जब कोई व्यक्ति किसी एक मूर्ति पर टैप करता है, तो एक ध्वनि उत्पन्न होती है जो एक छोर पर पत्थर और धातु से दूसरे छोर तक तिरछी होकर दूसरी मूर्ति की ओर जाती है. मंदिर के कई स्तंभ हैं जो इस तरह की संगीतमय ध्वनियां उत्पन्न करते हैं. 

बृहदेश्वर मंदिर के दर्शन का समय (Brihadeshwara Temple Timings)-

बृहदेश्वर मंदिर सुबह 6 बजे से तीर्थयात्रियों या श्रद्धालुओं के लिए खुल जाता है. दोपहर 12:30 बजे से शाम 4 बजे तक बंद रहता है. इसके बाद रात 9 बजे तक खुला रहता है. मंदिर में दर्शनों के लिए श्रद्धालुओं की भीड़ सुबह पांच बजे से ही उमड़ पड़ती है. रविवार को मंदिर में बहुत भीड़ हो जाती है. बृहदेश्वर मंदिर में चार बार पूजा होती है. सुबह की पूजा 8:30 बजे, मध्याह्न पूजा दोपहर 12 बजे, शाम की आरती और पूजा शाम 5:30 बजे और रात की पूजा 8:30 बजे होती है. इसी के साथ, इस मंदिर में कई साप्ताहिक, मासिक और पाक्षिक पूजाएं भी की जाती हैं. त्योहारों के दौरान पूजा के समय में बदलाव भी किया जाता है. 

बृहदेश्वर मंदिर कैसे पहुंचा जाए- (How to reach Brihadeshwara Temple)

हवाई मार्ग से-

बृहदेश्वर मंदिर जाने के लिए, तंजावुर से निकटतम हवाई अड्डा त्रिची में स्थित है जो 65 किलोमीटर की दूरी पर है. 

ट्रेन से-

यह तंजावुर पहुंचने का सबसे आसान और सुविधाजनक तरीका है. चूंकि शहर का अपना रेलवे स्टेशन है, यह भारत के अन्य प्रमुख शहरों से अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है. 

सड़क मार्ग से-

तंजावुर की यात्रा भी एक अच्छा विकल्प है. यह एर्नाकुलम, कोच्चि और तिरुवनंतपुरम के साथ तमिलनाडु के सभी शहरों से जुड़ा हुआ है. यहां तक ​​कि बैंगलोर का तंजावुर के साथ उचित संपर्क है. तंजावुर चेन्नई से 322 किमी दूर स्थित है. 

तंजावुर और उसके आसपास सभी उम्र के पर्यटकों के लिए, सभी बजट में अलग-अलग होटल हैं. इसके अलावा यहां प्राइवेट रेस्टोरेंट समेत तमाम आधुनिक सुविधाओं से लैस कई आलीशान होटल हैं. तीर्थयात्री अपनी पसंदानुसार अपने कमरे पहले से ही बुक कर सकते हैं. इसी के साथ, खाने के शौकीन लोगों के लिए यहां विकल्पों की कोई कमी नहीं है.

बृहदेश्वर मंदिर के आस-पास के मंदिर (Thanjavur Temple)-

पूरा तंजौर ही बहुत खूबसूरत स्थान है और भव्य मंदिरों से भरा हुआ है. बृहदेश्वर मंदिर के आसपास तिरुवयारु मंदिर, दारासुरम ऐरावतेश्वर मंदिर, कुंभकोणम, पुन्नई नल्लूर मरिअम्मन मंदिर, थिरुकंदियूर, स्वामीमलाई और दारासुरम अन्य दर्शनीय स्थल और मंदिर हैं, जिन्हें देखना न भूलें- brihadeshwara temple, brihadisvara temple, brihadeeswara temple, peruvudaiyar kovil, rajarajeshwara temple thanjavur, chola emperor rajaraja i, chola dynasty, chola temple architecture 

तिरुवयारु मंदिर (Thiruvaiyaru Temple)-

भगवान शिव को समर्पित एक प्रसिद्ध मंदिर है जिसे पंचनाथेश्वर के नाम से जाना जाता है. यह वह स्थान भी है जहां कर्नाटक संगीत की त्रिमूर्ति में से एक, संत त्यागराज रहते थे और समाधि प्राप्त की थी. हर साल जनवरी में संत के जन्मदिन के उपलक्ष्य में एक संगीत समारोह आयोजित किया जाता है. 

कुंभकोणम (Kumbakonam)-

कुंभकोणम दक्षिण भारत के सबसे पुराने और पवित्र स्थानों में से एक है. कावेरी और अरसालार नदियों के बीच स्थित यह प्राचीन और खूबसूरत शहर लगभग 18 प्रसिद्ध मंदिरों का घर है, जिनमें कुंभेश्वर, सारंगपानी, नागेश्वर और चक्रपाणि मंदिर प्रमुख हैं. कुंभेश्वर मंदिर विशाल है और इसमें अद्भुत कलाकृति है. 15वीं में नायक राजाओं द्वारा निर्मित सारंगपानी मंदिर बारह मंजिला (लगभग 147 फीट ऊंचा) मंदिर है. नागेश्वरन मंदिर का निर्माण 12 वीं शताब्दी में आदित्य चोल द्वारा किया गया था और यह भगवान शिव को समर्पित है. कुंभकोणम महामघम उत्सव (Mahamagham festival) के लिए भी जाना जाता है जो 12 साल में एक बार होता है. 

स्वामीमलाई (Swamimalai Temple)-

यह भगवान सुब्रमण्यम के छह निवासों में से एक है. भगवान सुब्रमण्य को स्वामीनाथ कहा जाता है. मंदिर की ऊंचाई करीब 30 मीटर (100 फीट) है. इस मंदिर में भगवान शिव और उनके पुत्र कार्तिकेय 'शिष्य और गुरु' की भूमिका में हैं, क्योंकि इस स्थान पर कार्तिकेय ने अपने पिता भगवान शिव को दिव्य 'प्रणव मंत्र' का रहस्यमय महत्व समझाया था. और इसीलिए यहां सुब्रमण्य का मंदिर पहाड़ी की चोटी पर स्थित है और भगवान शिव का मंदिर नीचे स्थित है. 

तंजावुर पैलेस (Thanjavur Palace)-

मंदिर के पास स्थित यह महल शानदार चिनाई की एक विशाल इमारत है, जिसे आंशिक रूप से 1550 ईस्वी के आसपास नायकों द्वारा और आंशिक रूप से मराठों द्वारा बनाया गया था. विशाल कॉरिडोर्स और विशाल हॉल, दो पैलेस टावर्स, शस्त्रागार, ऑब्जर्वेशन टावर, और अलंकृत बालकनियां शहर के सभी हिस्सों से दिखाई देती हैं. यह पैलेस देखने लायक है. 

तिरुभुवनम मंदिर (Thirubuvanam Temple)-

यह मयिलादुथुराई-कुंभकोणम रोड पर है. कम्पाहेश्वर मंदिर और सरबेश्वर मंदिर इस शहर के महत्वपूर्ण मंदिर हैं. यह अपने रेशम बुनाई केंद्रों के लिए भी प्रसिद्ध है. 

दारासुरम (Darasuram)-

कुंभकोणम के बाहरी इलाके में स्थित दारासुरम में महान स्थापत्य योग्यता के कई प्राचीन मंदिर हैं. ऐरावतेश्वर मंदिर उन सभी में सबसे महत्वपूर्ण है. कहा जाता है कि भगवान शिव यहां एक 'रुद्राक्ष' वृक्ष के रूप में प्रकट हुए थे. यहां एक मंदिर का निर्माण 12वीं शताब्दी में चोल राजा राजराजा द्वितीय द्वारा किया गया था. इसका नाम ऐरावथ (मान्यतानुसार देवराज इंद्र का वाहन) की कहानी से लिया गया है. यह तीर्थ स्थान कला और वास्तुकला से भरपूर है. विमान 85 फीट ऊंचा है और सामने का मंडपम घोड़ों द्वारा खींचे गए रथ के रूप में बनाया गया है. मंदिर में भगवान शिव के अलावा देवी पार्वती, देवी सरस्वती, भगवान सुब्रमण्य और मृत्यु के देवता यम की भी मूर्तियां हैं. 

तिरुवरुर (Tiruvarur)-

तिरुवरूर शहर कर्नाटक संगीत के संगीतकार और संगीत त्रिमूर्ति के सदस्यों में से एक संत त्यागराज के जन्मस्थान के रूप में प्रसिद्ध है. यहां का मुख्य आकर्षण थग्यराजस्वामी मंदिर है, जो दक्षिण भारत के सबसे बड़े मंदिरों में से एक है. भगवान शिव को समर्पित यह मंदिर अपने शिलालेखों और मूर्तियों के लिए प्रसिद्ध है. यह मंदिर न्यायसंगत राजा मनु निधि चोल की कहानी और भगवान शिव की महिमा बताता है. 

गंगैकोंदा चोलपुरम (Gangaikondacholapuram)-

गंगैकोंदा चोलपुरम राजेंद्र चोल की राजधानी थी, जो राजराजा चोल के पुत्र और उत्तराधिकारी थे. इतिहास के अनुसार, राजेंद्र चोल ने गंगा नदी के पवित्र जल को अपने राज्य में लाने के लिए कई उत्तरी राज्यों पर विजय प्राप्त की थी. उत्सव के प्रतीक के रूप में, उन्होंने एक 'जीत का तरल स्तंभ' (जलमय स्तम्भ) बनाया, इसलिए उन्हें 'गंगईकोंडचोल' (वह चोल राजा जो गंगा लाए थे) कहा जाता था और शहर का नाम उन्हीं के नाम पर रखा गया. यहां स्थित भगवान बृहदेश्वर को समर्पित मंदिर कई मायनों में तंजौर के मंदिर के समान है. महिषासुरमर्दिनी, नटराज, अर्धनारीश्वर, चंडिकेश्वर आदि की कुछ आकर्षक मूर्तियां हैं. हाल ही में, राज्य पुरातत्व विभाग ने गंगैकोंदा चोलपुरम से 2 किमी दक्षिण-पश्चिम में मलिगाइमेडु में एक साइट पर राजेंद्र चोल I द्वारा निर्मित एक शाही महल के अवशेषों का पता लगाया है. यह यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थल है. 

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