गणेश चतुर्थी 2025: पूजा विधि, आरती, स्तोत्र, व्रत कथा, ज्योतिषीय महत्व, भोग, सजावट और वास्तु नियम
भारत में त्योहार सिर्फ उत्सव नहीं बल्कि आस्था, परंपरा और खुशियों का संगम होते हैं। इन्हीं में से सबसे महत्वपूर्ण पर्व है गणेश चतुर्थी, जिसे विघ्नहर्ता गणपति बप्पा के आगमन के रूप में मनाया जाता है।
गणेश चतुर्थी भगवान गणेश के जन्म का त्योहार है। उन्हें विघ्नहर्ता, बुद्धि-दयाक और सिद्धिदाता माना जाता है। भारत में यह पर्व बड़े प्रेम और श्रद्धा से मनाया जाता है — घरों में छोटी-बड़ी प्रतिमाएँ स्थापित की जाती हैं, मोदक और लड्डू चढ़ाये जाते हैं, आरती-स्तोत्र किये जाते हैं और अंत में मूर्ति विसर्जित की जाती है।
भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी से शुरू होकर यह उत्सव 10 दिनों तक चलता है और अनंत चतुर्दशी के दिन गणपति विसर्जन के साथ संपन्न होता है।
गणेश चतुर्थी का पर्व पूरे भारत ही नहीं, बल्कि विदेशों में बसे भारतीय समुदायों के बीच भी बड़ी श्रद्धा और धूमधाम से मनाया जाता है। इस लेख में हम आपको बताएंगे –
- गणेश चतुर्थी का महत्व और 2025 में तिथि
- पूजा विधि (घर पर करने योग्य सरल तरीके से), व्रत और उपवास नियम
- आरती, मंत्र और स्तोत्र (जो प्रचलन में हैं और गीता प्रेस जैसे प्रमाणित स्रोतों में मिलते हैं)
- भोग, सजावट, वास्तु नियम और ज्योतिषीय महत्व
- साथ ही कुछ धार्मिक मान्यताएँ और परंपराएँ
ताकि आप अपने घर में भी पूरी श्रद्धा और सही विधि से गणेश जी की पूजा कर सकें।
गणेश चतुर्थी का महत्व और 2025 की तिथि
गणेश चतुर्थी का महत्व
गणेश चतुर्थी को विघ्नहर्ता, बुद्धिदाता और मंगलकारी भगवान गणेश के जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है।
मान्यता है कि इस दिन श्रीगणेश का प्राकट्य हुआ था। वे सभी देवताओं में आदि पूज्य हैं, यानी किसी भी शुभ कार्य से पहले गणपति जी की पूजा अनिवार्य है।
शास्त्रों में गणेश जी को “सर्वप्रथम पूज्य” कहा गया है — बिना उनके पूजन के कोई भी देवपूजा, यज्ञ, या मंगल कार्य पूर्ण नहीं होता। इस दिन की पूजा से विघ्न-बाधा दूर होती है, धन-वैभव में वृद्धि होती है और घर में सुख-शांति बनी रहती है।
गणपति जी को
- विघ्नहर्ता (संकट दूर करने वाले)
- सिद्धिविनायक (सभी सिद्धियाँ देने वाले)
- मंगलमूर्ति (सुख और शांति प्रदान करने वाले)
कहा जाता है।
गणेश चतुर्थी का पर्व हमें यह संदेश देता है कि—
- जीवन में किसी भी कार्य की शुरुआत अच्छे संकल्प और श्रद्धा से करनी चाहिए।
- विघ्न चाहे कितने भी हों, भक्ति और ज्ञान से वे दूर हो जाते हैं।
- एकता और सद्भाव से परिवार और समाज में खुशियाँ आती हैं।
2025 में गणेश चतुर्थी की तिथि और समय
हिंदू पंचांग के अनुसार, 2025 में गणेश चतुर्थी का पर्व 27 अगस्त 2025, बुधवार को मनाया जाएगा।
- चतुर्थी तिथि प्रारंभ : 26 अगस्त 2025, दोपहर 01:54 बजे
- चतुर्थी तिथि समाप्त : 27 अगस्त 2025, दोपहर 03:44 बजे
पूजा के लिए शुभ मुहूर्त (मध्याह्न काल, दोपहर) :
- 27 अगस्त 2025, दोपहर 11:04 से 01:37 बजे तक
इस समय में गणपति जी की पूजा करना विशेष फलदायी माना जाता है।
धार्मिक मान्यता
- इस दिन व्रत रखने से बुद्धि, विद्या, आयु और आरोग्य की प्राप्ति होती है।
- गणपति जी की पूजा करने से घर में सुख-समृद्धि आती है और सभी विघ्न दूर होते हैं।
- मान्यता है कि गणपति स्थापना घर या मंडप में करने से सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।
घर पर करने योग्य सरल गणेश चतुर्थी पूजा विधि
पूजन सामग्री (Samagri)
- गणेश जी की मूर्ति (मिट्टी की या धातु की)
- चौकी और स्वच्छ लाल/पीले वस्त्र
- अक्षत (शुद्ध और अखंडित चावल), रोली/कुमकुम, सिंदूर, मौली
- दूर्वा (21 तिनके)
- पंचामृत (दूध, दही, शहद, घी, शक्कर)
- गंध, पुष्प (लाल पीले फूल), माला
- नैवेद्य: मोदक/लड्डू/फल/नारियल/शहद (जो पारंपरिक हो)
- दीपक, अगरबत्ती
- नारियल, सुपारी, पान
- कलश और जल
- प्रसाद रखनें की थाली, चम्मच, नैवेद्य के बर्तन
- श्रद्धा, समय, और बड़ों का आशीर्वाद
Day-1 (पहला दिन):
गणपति स्थापना (Sthapana) और पूजन से पहले की तैयारी
शुभ मुहूर्त में, सुबह स्नान करके साफ-सुथरे कपड़े पहनें।
घर के ईशान कोण (उत्तर-पूर्व दिशा) या पूजा स्थान को स्वच्छ कर एक लकड़ी का पाटा / चौकी रखें
उस चौकी पर लाल/पीला वस्त्र बिछाएँ।
चौकी पर कलश रखें, उसके ऊपर नारियल स्थापित करें।
गणेश जी की मूर्ति को चौकी पर रखें, अर्थात् आसन पर स्थापित करें।
गणेश जी का मुख पूर्व या उत्तर दिशा की ओर होना चाहिए।
सामने पूजन सामग्री रखें — फूल, दूर्वा, मोदक/लड्डू, नारियल, दीपक, धूप, सिंदूर, अक्षत, पंचामृत, कलश आदि।
मूर्ति पर अक्षत, गंध, पुष्प, दूर्वा अर्पित करें।
संकल्प (Sankalp) लें
दाहिने हाथ में जल, फूल और अक्षत लेकर गणेश जी के सामने यह संकल्प करें—“ॐ श्रीगणेशाय नमः, मैं इस गणेश चतुर्थी के दिन, सुख, समृद्धि, स्वास्थ्य और विघ्न-निवारण के लिए भगवान गणेश का पूजन करता/करती हूँ, मुझे कृपा कर पूर्ण फल प्रदान करें।”
आचमन एवं शुद्धिकरण
तीन बार जल ग्रहण करके आचमन करें। हाथ में जल लेकर वातावरण शुद्ध करें और
“ॐ अपवित्रः पवित्रो वा सर्वावस्थांगतोऽपि वा। यः स्मरेत्पुण्डरीकाक्षं स बाह्याभ्यन्तरः शुचिः॥”
का उच्चारण करें।
गणेश आवाहन और पूजन
दीपक, धूप जलाकर गणेशजी का ध्यान करें।
ध्यान मंत्र –
“वक्रतुंड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ।
निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा॥”
प्रसन्नवदनं ध्यायेत्सर्वविघ्नोपशान्तये॥”
गणेश जी का आवाहन कर उन्हें आसन, पाद्य, अर्घ्य, आचमन और स्नान अर्पित करें।
पंचामृत स्नान कराएँ (यदि संभव हो तो)।
वस्त्र, यज्ञोपवीत, आभूषण (यदि संभव हो तो), गंध, अक्षत, पुष्प अर्पित करें।
भोग और नैवेद्य
मोदक, लड्डू, फल आदि भोग अर्पित करें। गणपति को 21 मोदक अर्पित करने का विधान है।
इनके साथ दूर्वा (21, 51 या 108 तिनके), लाल फूल, नारियल का नैवेद्य चढ़ाया जाता है।
दीपक और धूप अर्पित करें। फूल चढ़ाएँ और प्रणाम करें।
आरती करें
- “जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा” (नीचे पूरी आरती दी गई है)
- “सुखकर्ता दुःखहर्ता”
व्रत करें (यदि चाहें तो) और कथा श्रवण करें या पढ़ें
व्रतधारी पूरे दिन सात्विक भोजन करें (व्रत की विधि नीचे दी गई है)।
शाम को गणेश जी की कथा सुनें (कथा नीचे दी गई है)।
मंत्र जप करें, स्तोत्र पाठ पढ़ें, गणपति अथर्वशीर्ष का पाठ करें
गणेश जी का मूल मंत्र:
“ॐ गं गणपतये नमः” (कम से कम 108 बार जपें)
अथवा गणपति अथर्वशीर्ष का पाठ करें । स्तोत्र पाठ पढ़ें। कथा के बाद स्तोत्र पढ़ा जाता है, जैसे संकटनाशन गणेश स्तोत्र
“प्रणम्य शिरसा देवं गौरीपुत्रं विनायकम्।
भक्तावासं स्मरेन्नित्यं आयुःकामार्थसिद्धये॥”
(कम से कम 1-2 श्लोक या पूरा स्तोत्र पढ़ सकते हैं)
कथा के बाद पुनः आरती और भोग लगाएँ। 21 मोदक/लड्डू चढ़ाएँ। दूर्वा (21 तिनके) अर्पित करें। सिंदूर और लाल फूल अर्पित करें। नारियल और पंचामृत चढ़ाएँ।
पूजन समाप्ति पर
हाथ जोड़कर प्रार्थना करें—
“हे विघ्नहर्ता श्रीगणेश! मेरी पूजा स्वीकार करें, सभी दोष क्षमा करें और घर में सुख-समृद्धि बनाए रखें। मेरे जीवन के सभी विघ्न दूर करें, सुख-समृद्धि और स्वास्थ्य प्रदान करें।"
श्रद्धापूर्वक परिवार सहित आरती करें और प्रसाद ग्रहण करें।
आशीर्वाद और व्रत फलश्रुति
अंत में यह संकल्प लिया जाता है—
“हे गणपति! इस व्रत से जो भी पुण्य प्राप्त हो, वह मेरे परिवार के सुख, स्वास्थ्य, समृद्धि और विघ्न-निवारण में सहायक बने।”
इस प्रकार पूरी पूजा-विधि पूर्ण होती है।
(संध्या के समय भी पुनः आरती और नैवेद्य किया जाता है।)
इस प्रकार गणेश पूजा का पूरा क्रम है:
संकल्प →
गणेश पूजन →
व्रत कथा श्रवण →
स्तोत्र / मंत्र पाठ →
आरती →
नैवेद्य / भोग →
फलश्रुति / आशीर्वाद
ये घर पर करने योग्य सरल गणेश चतुर्थी पूजा विधि है।
Days 2–9: (दैनिक पूजा / सरल नियम)
हर दिन सुबह या संध्या समय पर छोटी पूजा करें: धूप-दीप, पुष्प, दूर्वा और छोटा नैवेद्य।
प्रतिदिन कम से कम 11 बार ॐ गं गणपतये नमः जपो। (यदि संभव हो 108 के गुना में)
गणपति अथर्वशीर्ष का पाठ रोज़ करने की परंपरा शुभ मानी जाती है — विशेषकर चतुर्थी और व्रत दिनों पर।
Day-10/11: विसर्जन (Visarjan) — समापन विधि
1. अंतिम दिन, अनंत चतुर्दशी के दिन, (जैसे 10वाँ या 11वाँ) पर सुबह-संध्या दोनों में पूजा करें।
2. परिवार के साथ प्रार्थना करें और गणेश को धन्यवाद दें। गणेश जी से निवेदन करें: “हे गणपति! मेरी पूजा, प्रसाद स्वीकार करें और अगले वर्ष पुनः पधारें।”
परिवारजन मिलकर आरती करें।
3. मूर्ति को स्वच्छ वस्त्र में लपेटकर जल में विसर्जित करें। विसर्जन के पहले कृपया स्थानीय निर्देशों/पर्यावरण नियमों का पालन करें — यदि मिट्टी की मूर्ति है तो खुले जल में विसर्जन (प्राकृतिक जल स्रोत में) किया जा सकता है; वरना स्थानीय पारिस्थितिक उपाय अपनाएँ।
4. विसर्जन के बाद पुनरागमन की प्रार्थना कहें: “हे गणपति, कृपा कर अगली बार भी आना, और जल्दी आना।”
गणेश चतुर्थी व्रत एवं उपवास के नियम
व्रत का महत्व
गणेश चतुर्थी का व्रत करने से सभी विघ्न-बाधाएँ दूर होती हैं और घर में सुख, समृद्धि, सौभाग्य आता है। यह व्रत पुरुष, स्त्री, गृहस्थ, संन्यासी सभी कर सकते हैं।व्रत का संकल्प
सुबह स्नान करके गणेश जी के सामने संकल्प लें—
“ॐ श्री गणेशाय नमः। आज मैं गणेश चतुर्थी का व्रत श्रद्धापूर्वक करूँगा/करूँगी, कृपया मुझे विघ्न रहित जीवन प्रदान करें।”
व्रत या उपवास के प्रकार
गृहस्थ अपनी क्षमता अनुसार तीन प्रकार से व्रत कर सकते हैं—
- निर्जल उपवास – पूरे दिन जल भी ग्रहण नहीं करना।
- फलों पर उपवास – फल, दूध, चाय, शुद्ध सात्विक आहार लेना।
- एक समय का भोजन – दिन में केवल एक बार सात्विक भोजन लेना।
शास्त्रों में फलाहार या एक समय भोजन को अधिक प्रचलित माना गया है।
व्रत का दिनचर्या क्रम
- प्रातः स्नान और संकल्प।
- गणेश जी की मूर्ति की स्थापना और पूजन।
- दिनभर गणेश मंत्र जप करना – “ॐ गं गणपतये नमः”
- शाम को कथा सुनना और आरती करना।
- अंत में व्रत का समापन प्रसाद (मोदक/लड्डू) ग्रहण करके करें।
व्रत में नियम
- तामसिक भोजन (प्याज, लहसुन, मांस, शराब) वर्जित है।
- झूठ बोलना, कटु वचन बोलना, किसी का अपमान करना नहीं करना चाहिए।
- ब्रह्मचर्य का पालन आवश्यक है।
व्रत का उद्यापन
- व्रत का उद्यापन अनंत चतुर्दशी (10 दिन बाद) गणेश विसर्जन के समय किया जाता है।
- उस दिन विशेष पूजन, हवन और दान का विधान है।
इस प्रकार गणेश चतुर्थी व्रत करने से मनुष्य को धन, संतति, सौभाग्य और विघ्न-निवारण का आशीर्वाद प्राप्त होता है।
गणेश चतुर्थी व्रत कथा
गणेश चतुर्थी की मुख्य व्रतकथाएँ मुख्य रूप से दो रूपों में प्रचलित हैं—
1. चन्द्रमा उपहास कथा (जिसमें चन्द्रमा को शाप दिया जाता है)
2. श्रीकृष्ण पर मणि-चोरी का मिथ्या दोष वाली कथा (जो उसी शाप का परिणाम है)
ये दोनों कथाएँ वास्तव में एक-दूसरे से जुड़ी हुई हैं और अक्सर साथ ही सुनाई जाती हैं।
कथा 1: चन्द्रमा उपहास कथा
भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी को गणेश जी का प्राकट्य हुआ। उस दिन सभी देवता उनकी स्तुति करने आए। सभी ने भोग अर्पण किया और गणेश जी ने भरपेट लड्डू खाए। रात्रि के समय जब वे मूषक पर सवार होकर भ्रमण कर रहे थे, तो मूषक ने किसी सर्प को देखकर भयवश उछाल मारी। इससे गणेश जी नीचे गिर पड़े और उनके गहने-आभूषण इधर-उधर बिखर गए। यह दृश्य देखकर चन्द्रदेव हँस पड़े और उनका उपहास करने लगे।
गणेश जी को यह हँसी अपमानजनक लगी और उन्होंने चन्द्रदेव को शाप दे दिया—
“हे चन्द्रमा! तूने मेरा उपहास किया है। आज से तेरा दर्शन करने वाला पाप और मिथ्या कलंक का भागी बनेगा। जो मनुष्य भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी को तेरा दर्शन करेगा, उस पर मिथ्या आरोप लगेगा।”
चन्द्रमा घबराकर क्षमा याचना करने लगे। तब गणपति जी ने दया कर कहा—
हे चन्द्रमा! “तू पूर्णतः शापमुक्त नहीं हो सकता, मेरा यह शाप आज भी बना रहेगा, किन्तु भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी के दिन मेरा पूजन करने वाला और मेरी कथा सुनने वाला चन्द्रदर्शन दोष से मुक्त हो जाएगा।”
कथा 2: श्रीकृष्ण पर मणि-चोरी का मिथ्या दोष कथा
कथा के अनुसार, एक बार श्रीकृष्णजी पर स्यमन्तक मणि (रत्न) चुराने का झूठा दोष लगा। यद्यपि वे निर्दोष थे, फिर भी लोग उनकी निंदा करने लगे।
भगवान श्रीकृष्ण को ध्यान आया कि यह सब गणेश जी के चन्द्रमा पर दिए गए शाप के कारण हो रहा है, क्योंकि भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी को उन्होंने चन्द्रमा का दर्शन कर लिया था।
तब श्रीकृष्ण ने गणेश चतुर्थी का व्रत विधिपूर्वक किया और गणपति की कथा का श्रवण किया। गणेश जी प्रसन्न हुए और चन्द्रदर्शन-दोष से मुक्ति दी। फिर स्यमन्तक मणि की चोरी का रहस्य भी स्पष्ट हो गया और श्रीकृष्ण निर्दोष सिद्ध हुए। इस प्रकार गणेश चतुर्थी की कथा सुनने से गणपति जी की कृपा प्राप्त होती है और सभी विघ्न दूर होते हैं।
कथा का महत्व और फलश्रुति
- इस दिन व्रत करके और कथा सुनकर मनुष्य मिथ्या दोष से मुक्त हो जाता है।
- गणेश जी की कृपा से धन, बुद्धि, समृद्धि, सुख शांति और सौभाग्य की प्राप्ति होती है।
- यह व्रत कथा घर के सभी सदस्यों को सुननी चाहिए।
- जो भी श्रद्धापूर्वक गणेश चतुर्थी का व्रत करता है और ये दोनों कथाएँ सुनता है, उसके जीवन के विघ्न-बाधाएँ दूर होती हैं। मिथ्या दोष और कलंक से रक्षा होती है।
इस प्रकार, पूजा में पहले चन्द्रमा उपहास कथा पढ़ी जाती है और उसके बाद कृष्ण पर मणि-चोरी वाली कथा सुनाई जाती है। यही पूर्ण गणेश चतुर्थी व्रतकथा मानी जाती है।
मिथ्या दोष निवारण मन्त्र
सम्पूर्ण चतुर्थी तिथि के दौरान चन्द्र दर्शन निषेध होता है, अगर भूल से गणेश चतुर्थी के दिन चन्द्रमा के दर्शन हो जायें तो मिथ्या दोष से बचाव के लिये निम्नलिखित मन्त्र का जाप करना चाहिये -
सिंहः प्रसेनमवधीत्सिंहो जाम्बवता हतः।
सुकुमारक मारोदीस्तव ह्येष स्यमन्तकः॥
गणेश पूजन के अनिवार्य अंग
1. गणेश स्तुति / स्तोत्र पाठ
कथा सुनने के बाद भक्तजन प्रायः कोई छोटा-सा स्तोत्र या मंत्र पाठ करते हैं।
सबसे लोकप्रिय है:
- गणपति अथर्वशीर्ष
- संकटनाशन गणेश स्तोत्र (ऋषि नारदकृत)
- या फिर मंत्र जैसे—
“ॐ गं गणपतये नमः”
“वक्रतुंड महाकाय…”
2. श्री गणेश आरती गान
पूजा और कथा के अंत में आरती होती है। गणेश चतुर्थी पर सामान्यतः ये आरतियाँ गाई जाती हैं। यहां मैं वो आरती दे रही हूं जो पारंपरिक रूप से उपयोग होते हैं — इन्हें आप पूजा के दौरान पढ़ सकते हैं। (गीता-प्रेस के Aarti Sangrah में भी आरती-पाठ उपलब्ध है)।
(A) लोकप्रिय आरती — जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश देवा (पूरी पंक्तियाँ)
जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश देवा।
माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा॥
एकदंत, दयावंत, चार भुजा धारी।
माथे पर सिंदूर सोहे, मूषक की सवारी॥
पान चढ़े, फूल चढ़े, और चढ़े मेवा।
लड्डुअन का भोग लगे, संत करें सेवा॥ जय गणेश...
अंधन को आंख देत, कोढ़िन को काया।
बांझन को पुत्र देत, निर्धन को माया॥
ऋद्धि देत, सिद्धि देत, और देत मेवा।
सूर्य श्याम शरण आए, सफल कीजे सेवा॥जय गणेश...
दीनन की लाज रखो, शंभु सुतवारी।
कामना को पूर्ण करो, जाऊँ बलिहारी॥
जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश देवा।
माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा॥
(B). सुखकर्ता दुखहर्ता वार्ता विघ्नाची (मराठी परंपरा में प्रसिद्ध)
(D) गणेश जी का बीज मंत्र (जप हेतु)
विशेष प्रचलन
वास्तु सुझाव और मूर्ति-रखने का सही तरीका (प्रमाणित स्रोत के आधार पर)
वास्तु के अनुसार कुछ उपयोगी सुझाव जो अक्सर प्रतिष्ठित साइटों पर दिये जाते हैं — ये सामान्य-गृह उपयोग हेतु हैं।
1. घर के मुख्य द्वार पर आम्रपल्लव और अशोक पत्र का तोरण लगाएँ।
2. पूजा स्थल पर लाल और पीले फूलों की सजावट करें।
3. गणेश जी के सामने अष्टदल कमल बनाकर दीप जलाएँ।
4. दीपक में देशी घी का उपयोग करें।
5. घर में पूर्व या उत्तर दिशा में पूजा स्थल रखना शुभ है।
स्थान:
पूजा-स्थान या मूर्ति उत्तर-पूर्व (ईशान) या पूर्व दिशा की ओर रखें। दक्षिण दिशा न रखें।
मूर्ति की मुद्रा:
बैठी मुद्रा (lalitasana) और सूंड बाईं ओर मोड़ी हुई (वाममुखी) सामान्यत: घर के लिए शुभ मानी जाती है।
दाहिने सूंड (दक्षिणमुखी) वाली मूर्ति मंदिर या विशेष साधना में आती है — उसके साथ नियम और सावधानियां बढ़ जाते हैं।
सामग्री:
मिट्टी/काष्ठ/पीतल/कौशलयुक्त सामग्री — पर्यावरण के अनुकूल विकल्प (मिट्टी) घर के लिए अच्छे माने जाते हैं।
रंग/सज्जा:
शुभ रंग — लाल, पीला, सफेद; पूजा स्थल साफ़ रखे।
नोट:
वास्तु-टिप्स स्थानीय परस्थिति पर निर्भर करते हैं (घर का आकार, प्रवेश द्वार की दिशा इत्यादि), इसलिए बड़ा बदलाव करने से पहले वास्तु-विशेषज्ञ से सलाह लें।
गणेश चतुर्थी पर सजावट-आइडियाज (Traditional + Eco-friendly + Modern DIY)
Traditional:
आम की तोरण, रंगोली, मेहंदी/कपास के तोरण, पीले-लाल फूलों के हार।
Eco-friendly:
पत्तियों से बैकड्रॉप, मिट्टी से बने थ्रों, नॉन-प्लास्टिक सजावट।
Modern / Minimalist:
पेस्टल बैकड्रॉप, वुडेन स्टैंड, इलेक्ट्रिक fairy lights, सजावटी बूके।
DIY:
बच्चों के साथ पेपर-मास्क, रंगीन कागज़ के झूमर, बांस/जूट के पैनल।
ट्रेंड्स:
इस साल कस्टमाइज्ड मूर्तियाँ और eco-friendly setups तेज़ी से ट्रेंड कर रहे हैं (लोकल रिपोर्ट्स में ये बातें उभरी हैं)।
गणेश चतुर्थी पर भोग (प्रसाद)
गणेश जी को विशेष रूप से मोडक, लड्डू, और पुए अति प्रिय हैं।
महाराष्ट्र में घर-घर पर उकडीचे मोदक बनते हैं।
उत्तर भारत में पंजीरी और बूंदी के लड्डू का भोग लगाया जाता है।
दक्षिण भारत में कदमोडक और पायसम (खीर) चढ़ाते हैं।
गणेश चतुर्थी पर ज्योतिषीय विशेष बातें — इस साल के योग (समाचार/रिपोर्ट्स के आधार पर)
कुछ प्रमुख समाचार और ज्योतिष रिपोर्ट्स ने इस साल गणेश चतुर्थी के समय शुभ योगों का उल्लेख किया है, उनके अनुसार — गणेश चतुर्थी 2025 पर छः दुर्लभ योगों का संगम बन रहा है –
1. धन योग – धन वृद्धि और संपत्ति प्राप्ति का योग।
2. लक्ष्मी-नारायण योग – आर्थिक समृद्धि और वैभव में वृद्धि।
3. गजकेसरी योग – ज्ञान, सम्मान और पद की प्राप्ति।
4. रवि योग – सूर्य की कृपा से आत्मबल और सफलता।
5. शुभ योग – सभी कार्यों में मंगलमय फल की प्राप्ति।
6. आदित्य योग – भाग्य वृद्धि और सम्मान प्राप्ति
इन योगों के कारण इस बार का गणेशोत्सव अत्यंत विशेष है।
यह समय शुभ कार्य करने के लिए अनुकूल माना जा सकता है; पर व्यक्तिगत जन्मकुंडली के लिए अपने ज्योतिष से सलाह लें।
इस बार की ज्योतिषीय सलाह (Astrologers की राय)
इस वर्ष गणेश चतुर्थी पर षड्योग का संगम दुर्लभ है, इसलिए
सोने, चाँदी या पीतल की प्रतिमा पर सिंदूर चढ़ाना शुभ रहेगा।
मंत्र जप (108 बार), विशेषकर “ॐ गं गणपतये नमः” या “वक्रतुण्ड महाकाय” का पाठ लाभकारी है।
दूर्वा अर्पण करने से घर के संकट दूर होंगे।
इस बार की गणेश चतुर्थी केवल धार्मिक ही नहीं बल्कि ज्योतिषीय दृष्टि से भी अद्वितीय है। जो साधक भक्ति भाव से गणपति पूजन करेंगे उन्हें जीवन में धन, सुख, शांति, और सफलता की प्राप्ति होगी।
घर में गणेश चतुर्थी पूजा के सरल और प्रभावी उपाय
स्नान के बाद लाल या पीले वस्त्र पहनकर पूजा करें। गणेश जी की प्रतिमा को पूर्व या उत्तर दिशा में स्थापित करें। पंचोपचार पूजा (गंध, पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य) करें। लड्डू या मोदक का भोग लगाना अत्यंत शुभ माना जाता है। “ॐ गं गणपतये नमः” का 108 बार जप करें। संध्या समय आरती (गणपति आरती – "जय गणेश देवा") करें।
गणेश चतुर्थी पर सरल उपाय (ज्यादा general):
गणेश मंत्र जप, दूर्वा अर्पण, पावन-हृदय से दान और व्रत — ये सामान्य उपाय हैं जिनसे शुभ फल मानते हैं।
गणेश चतुर्थी पर FAQs
Q1. घर पर गणेश चतुर्थी कब मनाएँ?
स्थानीय पंचांग के अनुसार चतुर्थी तिथि और मुहूर्त देखें; DrikPanchang जैसे साइट से अपने शहर का मुहूर्त निकालें।
Q2. किस दिशा में मूर्ति रखें?
उत्तर या पूर्वोत्तर (ईशान) श्रेष्ठ; सूंड बायीं ओर; सामान्य घरों में शुभ मानी जाती है।
Q3. कौन-सा भोग सबसे उचित है?
मोदक (उकडीचे), मोतिचूर लड्डू, पायसम — क्षेत्रीय भेद होते हैं।
Q4. मैं घर पर 1-दिन का भी उत्सव कर सकता हूँ?
हाँ — छोटे परिवारों में 1-दिन (संकल्प, स्थापना, आरती, विसर्जन) भी विधिवत् किया जा सकता है; पर शास्त्रानुसार 10-दिन का भी प्रचलन है।
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