श्री पितर वंदना (pitra vandana lyrics in Hindi)

॥श्री पितर जी वंदना (pitra vandana lyrics in Hindi)॥

दोहा - 

पितरा को पद सबसूं ऊंचो, घर का देव कहावे। 
बड़ा बुजुर्ग भी याही कहता, बड़का आडा आवे।।

जय जय पितरजी महाराज, मैं शरण पड़यों हूं थारी।
आप ही रक्षक, आप ही दाता, आप ही खेवन हारे।
मैं मूरख हूं, कुछ नहीं जानू, आप ही हो रखवारे||1|| 

जय...

आप खड़े हैं हरदम हर घड़ी, करने म्हारी रखवारी।
हम सब जन है शरण आपकी, यह थारी फुलवारी||2||

जय...

देश और परदेश सब जगह, आप ही करो सहाई।
काम पड़े पर नाम आपको, लगे बहुत सुखदाई||3||

जय...

मैं भी आयो शरण आपकी, अपने सहित परिवार।
रक्षा करो आप ही सबकी, रटूं मैं बारंबार||4||

जय...

श्री पितर जी वंदना (pitra vandana lyrics in Hindi)

पितर कौन होते हैं?

पितर मतलब हमारे पूर्वज – जैसे हमारे दादा-दादी, परदादा-परदादी, और उनसे भी ऊपर जो हमारे परिवार की जड़ रहे।

सीधी भाषा में कहें तो – हम आज जो हैं, वो उन्हीं की वजह से हैं।

पितरों के प्रकार

ग्रंथों में पितरों के कई प्रकार बताए गए हैं, लेकिन आसान भाषा में आप इन्हें ऐसे समझ सकते हैं:

1. निकट पितर – जैसे हमारे माता-पिता, दादा-दादी।

2. दूर के पितर – जैसे परदादा-परदादी और उनसे ऊपर की पीढ़ियाँ।

3. ऋषि पितर – जिन्होंने कभी तपस्या और ज्ञान से पूरी मानव जाति को आगे बढ़ाया।

पितृपक्ष क्या है?

पितृपक्ष (या श्राद्ध) १६ चंद्र-तिथियों की एक अवधि है जब पूर्वजों की याद में तर्पण, पिंडदान और श्रद्धा की जाती है — यानी यह मूल रूप से पूर्वजों को समर्पित समय है। 

पितृपक्ष कब मनाया जाता है (समझने का आसान तरीका)

पितृपक्ष आम तौर पर भाद्रपद की पूर्णिमा के बाद से शुरू होकर (पूर्णिमा → अमावस्या) तक चलता है — यानी पूर्णिमा से अमावस्या वाली पखवाड़ा। यही वही अवधि है जिसमें लोग श्राद्ध करते हैं। 

पितृपक्ष भाद्रपद में आता है या आश्विन में? कहाँ से भ्रम आता है (मुख्य कारण)

असली वजह कैलेंडर का तरीका है — दो तरह के पारंपरिक महीनों के गिनने के तरीके हैं: अमान्त (amanta) और पुर्णिमान्त (purnimanta)। इसी वजह से कुछ जगहों पर उसी पखवाड़े को भाद्रपद कहा जाता है और कुछ जगहों पर उसे अश्विन कहा जाता है। 

इसलिए अगर किसी ने कहा “पितृपक्ष भाद्रपद में नहीं आता” — तो वह उस कैलेंडर/परम्परा के हिसाब से सही कह रहा होगा। दोनों बातें एक-दूसरे के विरोध में नहीं हैं; बस कैलेंडर का फर्क है। 

उदाहरण (साल 2025)

उदाहरण के लिए 2025 में पितृपक्ष की सामान्य तिथियाँ 7 सितंबर 2025 से 21 सितंबर 2025 बताई जा रही हैं — पर यह भी स्थान और पंचांग के अनुसार थोड़ी-थोड़ी बदल सकती हैं। 

संक्षेप में — पितृपक्ष का समय कैलेंडर पर निर्भर करता है और इसलिए दोनों तरह की बोलियाँ (भाद्रपद में आता / अश्विन में आता) जगह के हिसाब से कही जाती हैं।

पितृपक्ष क्यों मनाया जाता है?

हर साल पितृपक्ष में हम अपने पितरों को याद करके, तर्पण और श्राद्ध करते हैं।

मान्यता है कि इस दौरान पितर पृथ्वी पर आते हैं और अपनी संतान से आशीर्वाद देने के लिए प्रतीक्षा करते हैं।

श्राद्ध और तर्पण क्या है?

श्राद्ध – श्रद्धा से किया गया अन्नदान और पितरों को याद करने की प्रक्रिया।

तर्पण – जल और तिल अर्पित करना, ताकि पितरों की आत्मा तृप्त हो सके।

आत्मिक रूप से हमारे पितर चाहते हैं कि उनकी संतान उन्हें याद करे और जल-अन्न अर्पित करे।

पितरों की पूजा कैसे होती है?

1. पवित्र मन से गंगा जल या शुद्ध जल लें।

2. तिल, चावल और कुशा डालकर जल अर्पित करें।

3. पितरों का नाम लेकर उन्हें प्रणाम करें।

4. गरीबों, ब्राह्मणों या पशु-पक्षियों को भोजन कराएँ।

पितरों का महत्व

कहा जाता है कि अगर पितर प्रसन्न हैं तो घर में बरकत, संतान सुख और शांति बनी रहती है।

अगर पितर नाराज़ हैं (जिसे पितृ दोष कहते हैं) तो परिवार में रुकावटें, संतान संबंधी कठिनाइयाँ या आर्थिक समस्या आ सकती हैं।

आसान शब्दों में –

पितर वो नींव हैं, जिस पर हमारा आज खड़ा है। उनका सम्मान करना मतलब अपनी जड़ों को याद करना।

साधारण तरीके से पितरों को खुश करने के आसान उपाय

आजकल कई लोग घर से दूर रहते हैं, नौकरी/पढ़ाई में व्यस्त रहते हैं, या फिर पूरे वैदिक विधि-विधान से श्राद्ध करना संभव नहीं हो पाता।

ऐसे में सवाल यही उठता है कि — क्या साधारण तरीक़ों से भी पितर प्रसन्न हो सकते हैं?

उत्तर है — हाँ, बिल्कुल!

शास्त्रों में मूल भावना “श्रद्धा” को सबसे बड़ा महत्व दिया गया है। घर से दूर रहकर या बिना बड़े विधि-विधान के पितरों को प्रसन्न करने के आसान उपाय

1. जल अर्पण (तर्पण का सरल रूप)

सुबह स्नान के बाद खुले आकाश में खड़े होकर एक लोटा शुद्ध जल लें।

उसमें काला तिल, कुशा (यदि मिले) और फूल डालें।

सूर्य की ओर मुख करके तीन बार जल अर्पित करें और मन ही मन कहें:

“मेरे पूर्वज पितरों को प्रणाम, यह जल आपको अर्पित है।”

यह सबसे सरल और सशक्त तरीका है। पितर इसे स्वीकार करते हैं।

2. भोजन या अन्नदान

पितरों को याद करके गरीबों, ब्राह्मणों, गाय, कुत्तों, पक्षियों या चींटियों को भोजन दें।

खासकर कौओं को भोजन देना शुभ माना जाता है, क्योंकि उन्हें पितरों का प्रतीक माना गया है।

यह संदेश जाता है कि हम अपने पूर्वजों की स्मृति में जीवों का पेट भर रहे हैं।

3. दीप और धूप अर्पण

संध्या समय एक दीपक जलाकर पितरों के नाम से रखें।

अगरबत्ती या धूप जलाकर हाथ जोड़कर प्रणाम करें।

इसका अर्थ है कि हम उन्हें प्रकाश और सुगंध भेज रहे हैं।

4. मन से स्मरण और प्रार्थना

शास्त्र कहते हैं कि “श्रद्धया देयं” — यानी श्रद्धा ही मुख्य है।

यदि आप घर से दूर हैं तो बस शांत मन से बैठकर अपने पितरों के नाम याद करें और आशीर्वाद माँगें।

यह भावनात्मक जुड़ाव भी श्राद्ध का ही रूप है।

5. धर्म और सेवा का कार्य

पितरों को प्रसन्न करने के लिए कोई भी सत्कर्म करें:

अनाथ/जरूरतमंद की मदद

गौसेवा

मंदिर/धार्मिक स्थल में दान

शिक्षा या जलदान

यह मान्यता है कि पितर अपनी संतानों के अच्छे कर्म से सबसे अधिक प्रसन्न होते हैं।

संक्षेप में — अगर कोई व्यक्ति घर से दूर है या पूरे वैदिक विधि-विधान से श्राद्ध नहीं कर सकता तो भी:

1. सुबह जल अर्पण करें।

2. किसी जीव या ज़रूरतमंद को भोजन दें।

3. दीप जलाकर प्रणाम करें।

4. मन से अपने पितरों को याद करें और आशीर्वाद माँगें।

यही सरल उपाय पितरों को प्रसन्न करने के लिए पर्याप्त हैं।


पितरों को प्रसन्न करने के 10 आसान उपाय (Checklist)

1. सुबह जल अर्पण 

  • एक लोटा जल + काला तिल लेकर सूर्य की ओर मुख करके अर्पण करें।
  • “ॐ पितृभ्यः नमः” मन ही मन बोलें।

2. दीप प्रज्वलन 

  • संध्या समय घर में घी/तेल का दीप जलाकर पितरों को समर्पित करें।

3. कौए/पक्षियों को भोजन 

  • रोटी या अन्न निकालकर कौओं और अन्य पक्षियों को खिलाएँ।
  • शास्त्रों में कौए को पितरों का दूत माना गया है।

4. चींटियों को आटा या गुड़ देना 

  • घर के आँगन या बाहर चींटियों को आटा-गुड़ डालें।
  • यह अन्नदान का सूक्ष्म रूप है।

5. गौ-सेवा 

  • अगर संभव हो तो गाय को हरा चारा, रोटी या गुड़ खिलाएँ।

6. जरुरतमंद को भोजन/दान 

  • किसी गरीब को भोजन या वस्त्र दें।
  • पितरों की आत्मा इससे प्रसन्न होती है।

7. व्रक्ष/पौधे लगाना 

  • पितरों के नाम से कोई पेड़ या पौधा लगाएँ।
  • माना जाता है कि वृक्ष आशीर्वाद का प्रतीक बनते हैं।

8. घर में स्वच्छता और पवित्रता 

  • पितर स्वच्छ और शुद्ध वातावरण में प्रसन्न होते हैं।
  • इस दिन घर को साफ-सुथरा रखना भी श्राद्ध का ही रूप है।

9. शांति-पाठ या गायत्री मंत्र 

  • 10 या 108 बार गायत्री मंत्र या “ॐ नमः शिवाय” का जप करें।
  • मंत्रों का कंपन आत्माओं को शांति देता है।

10. मन से स्मरण और आभार 

  • शांति से बैठकर अपने पितरों के नाम लेकर कहें:
    “आज जो कुछ भी मैं हूँ, वह आप सबके आशीर्वाद से हूँ।”

पितरों को प्रसन्न करने के लिए श्रद्धा सबसे बड़ा साधन है।
चाहे घर से दूर हों, चाहे विधि-विधान न हो, ये 10 छोटे-छोटे उपाय रोज़मर्रा की ज़िंदगी में भी पर्याप्त हैं।

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